Overblog
Edit post Follow this blog Administration + Create my blog

पुरातत्व धरोहरों की लगातार उपेक्षा

पुरातत्व संग्राहलय में अब तक नहीं सहेजी गईं कई दुलर्भ मूर्तियां

http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/157730/2/298#.V7V6tHrhU8o
रायगढ़ ! जिले मे खनिज संपदा कि भरमार है लेकिन ऐतिहासिक तौर पर देखे तो जिले मे ऐसे कई गांव है जहां हजारों साल पुरानी मूर्तियंा विखंडित होकर गांव के बाहर विखरे पड़े हैं। इनकी सुरक्षा को लेकर शासन के पास कोई योजना नहीं है। हजारों साल पुरानी मूर्तियंा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में देवालय के रूप में पुजते आ रहे हंै। शासन द्वारा पुरातत्व भवन का भी निर्माण कर इन पुरातत्व धरोहरों को संग्रहीत करने का प्रयास किया गया था लेकिन रायगढ़ के नटवर स्कूल मैदान में लाखों कि राशि भवन निर्माण कर हजारो साल पुरानी मूर्तियों का जिला प्रशासन कि और कवायद भी किया गया था, लेकिन भवन के निर्माण के बाद से ही पुरात्व भवन अपने अस्तिव कि लड़ाई लड़ रहा है। यहां पर कर्मचारियो कि समस्या है तथा कम कर्मचारियों के कारण जिले के विभिन्न क्षेत्रों में बिखरे पड़े पुरातत्व धरोहरों का न तो निरीक्षण हो पा रहा है और न ही उनका संग्रहण व संरक्षण। यह बात हम नही खुद पुरातत्व संग्रहालय के अधिकारी कहते हंै।
पूर्वांचल क्षेत्र के ग्राम लोईग में वर्षो पुरानी विखंडित मुर्तिया लवारिस हालत मे बिखरी पड़ी है लेकिन इसका सुध लेने वाला कोई भी नही है । गांव के बच्चे इन मुर्तिया से खेला करते है। गांव के पुराने लोगो को मालुम चला तो सभी लोगो ने एक जुट होकर विखंडित मूर्तियंा को एकत्रित कर गांव के बाहर तालाब के पास रख दिया जिसके बाद प्रशासन को भी अवगत करा दिया लेकिन पुरातत्व से जुड़ी होने के बाद भी प्रशासन ने कोई रुची नही दिखाई तो गांव के लोग इसे देवलास के रूप मे पुजने लगे। जब कभी गांव में शादी या अन्य शुभ कार्य होते हैं ऐसे मौकों पर इन दुर्लभ मूर्तियों को पूजे जाने का रिवाज बन गया है। गांव के ग्रामीणों का यह भी मानना है कि ये मुर्तिया कब से है किसी को भी नही मालुम। इन विखंडित मूर्तियां मे घोड़े पर सवार हाथ में तलवार लिये सैनिक की मुद्रा है। उसके अलावे भगवान बुद्ध की भी कई मूर्तियंा इस अंचल में बिखरी पड़ीं हैं। रायगढ़ जिले मे कई ऐसे पुरातत्व से जुड़ी हुई यादे है लेकिन प्रशासन के नजर अंदाज करने के कारण इन धरोहरो को संरक्षित नहीं किया जा रहा है जिससे आज ये मुर्तिया संरक्षण के अभाव मे दम तोड रही है। इन मूर्तियों के संरक्षण के लिये 1979 मे एक टीम का गठन किया गया था। उसके बाद 1998 मे एक छोटे से भवन मे इन धरोहरो को रखा जाने लगा, लेकिन प्रशासन ने इस ओर भी ध्यान नही दिया । जिससे हजारो साल पुरानी मुर्तिया जहा तहा पड़ी रही। उसके बाद 2004 से पुर्व कलेक्टर अमित कटारिया ने सहजने का प्रयास किया और इसके लिये एक भवन का भी निर्माण कराया लेकिन स्टाफ की कमी के कारण यहां आज भी वही स्थिति है जो वर्षो पहले थी। संग्राहलय में लाई गई मूर्तियों को तो हर संभव सहेज कर रखने का प्रयास किया गया है मगर जिले के कई वनांचल क्षेत्रों में बडी संख्या में फैली हुई दुर्लभ तथा पुरातत्व की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण मूर्तियों को सहेजने का काम ठण्डे बस्ते में है।

Tag(s) : #पुरातत्व धरोहरों की लगातार उपेक्षा
Share this post
Repost0
To be informed of the latest articles, subscribe: