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देश में पत्रकारिता के अध्ययन और व्यावहारिक प्रशिक्षण की इस पृष्ठभूमि से जाहिर है कि असमान स्थितियों और कई तरह के अंतर्विरोधों के बीच पत्रकारिता का भविष्य तैयार हो रहा है। पत्रकारिता को व्यवसाय के लिए अध्ययन का क्षेत्र बनाने पर ज्यादा जोर दिखता है न कि लोकतंत्र के लिए भविष्य की पत्रकारिता को एक शक्ल देने की कोई ठोस योजना है। लोकतांत्रिक मूल्यों और विचारों के आलोक में नीतिगत स्तर पर पत्रकारिता की कोई ठोस शक्ल सूरत नहीं होने की स्थिति में यह जरूरी लगता है कि हमें भविष्य की पत्रकारिता का एक आकलन करना चाहिए। इसी उद्देश्य से निम्न अध्ययन का प्रारूप तैयार किया गया है। सर्वेक्षण के रूप में यह संक्षिप्त अध्ययन सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के छात्र-छात्राओं के बीच किया गया है।

इस सर्वेक्षण में दिल्ली विश्वविद्यालय अंतर्गत अदिति महाविद्यालय, रामलाल आनंद कॉलेज, भीमराव अम्बेडकर कॉलेज और गुरुनानक देव खालसा कॉलेज व जामिया मिलिया इस्लामिया के पी.जी डिप्लोमा तथा निजी क्षेत्र के शारदा विश्वविद्यालय के पत्रकारिता के छात्र -छात्राओं को शामिल किया गया है। इस सर्वेक्षण में दिल्ली विश्वविद्यालय एवं उसके अंतर्गत कॉलेजों के 209 छात्र, केन्द्रीय विश्वविद्यालय जामिया मिलिया इस्लामिया के 40 छात्र और शारदा विश्वविद्यालय के 54 छात्र-छात्राएं शामिल हुए।

पूरा सर्वेक्षण पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

पत्रकारिता संस्थानों में एक सर्वेक्षण

मोबाइल तकनीक और वंचित वर्ग

December 2, 2015

मौबनी दत्ता

संचार तकनीक जैसे कि मोबाइल आदि को इन दिनों आर्थिक व सामाजिक विकास के क्षेत्र में एक ताकतवर माध्यम के तौर पर माना जा रहा है, खासतौर से भारत की वंचित आबादी तक सहायता पहुंचाने के मकसद से। यही वजह है कि भारत के पिछड़े इलाकों में बहुत सारे गैर सरकारी संगठन वंचित लोगों के विकास में इस तरह की तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। सूचना आधारित तकनीकों का इस्तेमाल गरीबी कम करने व वंचित लोगों तक सुविधाओं का लाभ पहुंचाकर उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करना है। लेकिन इस तरह की संचार तकनीक परियोजनाओं के कामकाज का मूल्यांकन करने की जरूरत है। भारत के बहुत से ऐसे पिछड़े इलाकें हैं जहां लोग मोबाइल फोन का खर्च उठा सकने में सक्षम नहीं है। बहुत से लोगों को मोबाइल फोन चलाना भी नहीं आता। बहुत से इलाकों में आज भी बिजली नहीं पहुंची है। इन सब स्थितियों के बीच संचार तकनीकों के आधार पर लोगों के विकास की परियोजनाओं से उपजे कुछ सवालों के लिए कुछ इलाकों का सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण में इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की गई है कि क्या वाकई संचार आधारित तकनीकों से वंचित लोगों के जीवन में कोई सुधार हुआ है? इस सवाल का जवाब तलाशने के क्रम में संचार तकनीक आधार पर काम करने वाले दो संगठनों सीजी नेटस्वर व मोबाइल वाणी की पहुंच वाले कुछ चुनिंदा इलाकों में सर्वेक्षण किया गया। ये दोनों ही संगठन मोबाइल तकनीक के आधार पर काम करते हैं। सर्वेक्षण के दौरान इन संगठनों के लिए काम/सहयोग करने वाले, ग्रामीणों व जिला प्रशासन के अधिकारियों से इस संबंध में बातचीत कर सूचनाएं एकत्रित की गई।

सीजी नेटस्वर

सीजी नेट स्वर की वेबसाइट के अनुसार यह पत्रकारिता के लोकतांत्रिकरण के लिए नागरिक मंच है। यह ऑनलाइन पोर्टल है जो मध्य भारत के आदिवासी इलाकों की स्थानीय खबरों को मोबाइल फोन के जरिये कहने-सुनने का मौका देता है। इसमें दिए गए नंबर पर फोन कर कोई भी अपनी बात रिकॉर्ड करा सकता है और कोई मिस्ड कॉल देकर पोर्टल पर आई खबरों को सुन सकता है। यहां पर रिकॉर्ड होने वाली खबरों को पत्रकारों द्वारा जांचने-परखने के बाद उसे सुने जाने के लिए उपलब्ध करवाया जाता है। फरवरी, 2010 में स्थापित होने के बाद से यहां 37,000 फोन आए और उस पर आधारित 750 से ज्यादा खबरें छपी (मई 2011 का आंकड़ा)। यहां आने वाली सूचनाओं के आधार पर मुख्यधारा की मीडिया ने कई खबरें छापी और कुछ ने स्थानीय राजनीति पर भी अपना प्रभाव डाला। वेबसाइट के अनुसार सीजी नेटस्वर पर आने वाली ज्यादातर सूचनाओं में स्कूलों की बदहाली, पानी की कमी, मिड-डे मिल, नरेगा में भुगतान न होना, राशन कार्ड व पीडीएस, इंदिरा आवास व शौचालय निर्माण, बीपीएल परिवारों को भूमि वितरण, विधवा/वृद्ध पेंशन, बिजली, स्वास्थ्य आदि से संबंधित होती हैं। सीजी नेटस्वर पर आने वाली शिकायतों के बाद संबंधित विभाग से उन मुद्दों को हल करने के लिए संपर्क किया जाता है। सीजी नेटस्वर को स्थापित करने का विचार पत्रकार शुभ्रांशू चौधरी का है जो हर साल दिए जाने वाले सेंसरशिप फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन अवॉर्ड का हिस्सा है। उन्होंने इंडिया ई-गर्वंमेंट 2.0 अवार्ड, एम बिलियनथ साउथ एशिया अवॉर्ड 2010 भी प्राप्त किया है। सीजी नेटस्वर को इनविरोनिक्स ट्रस्ट, गेट्स फाउंडेशन, हिवोस, इंटरनेशनल सेंटर फॉर जर्नलिस्ट्स, सितारा, यूएन डेमोक्रेसी फंड सहयोग करते हैं।1

सीजी नेटस्वर के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए प्राथमिक तौर पर तथ्यों का संकलन करने के लिए मध्यप्रदेश के रीवा जिले को चुना गया। यहां सीजी नेटस्वर के साथ काम करने वाले कुछ स्वयंसेवकों, ग्रामीणों व जिले के अधिकारियों से साक्षात्कार किया गया।

पहला साक्षात्कार सीजी नेटस्वर के स्वयंसेवक रामशंकर प्रजापति का लिया गया। रामशंकर एपीएस विश्वविद्यालय में एम.फिल के छात्र भी हैं। रमाशंकर बताते हैं कि सीजी नेटस्वर से उन्हें मासिक 3000 रुपये मिलते है। उन्हें गांव-गांव घूमना होता है और अपने फोन से लोगों की समस्याओं को रिकॉर्ड करना होता है। उन गांवों में सीजी नेटस्वर के बारे में भी बताना होता है। उनके द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक सीजी नेटस्वर पर रीवा से कुल 96 शिकायतें दर्ज की गई जिसमें से 27 का निपटारा हुआ। वह सीजी नेट पर समस्याओं को रिकॉर्ड कराने के बाद जिले के कलक्टर, एसडीएम या अन्य संबंधित अधिकारियों से मिलते हैं और उनसे समस्याओं का समाधान करने की गुजारिश करते हैं। उन्होंने बताया कि उनके इस प्रयास से पानी के हैंडपंप लगे, बिजली का ट्रांसफार्मर लगा, लोगों को पेंशन, राशन कार्ड मिला, स्कूलों में मिड डे मिल मिलने लगा, गांवों के कालरा के मरीजों का मुफ्त इलाज हुआ और नरेगा के बकाया पैसों का भुगतान हुआ।

दूसरा साक्षात्कार सीजी नेटस्वर के एक स्वयंसेवक ब्रजेश का लिया गया। वह रीवा में एक मजदूर संगठन के साथ भी काम करते हैं। सीजी नेटस्वर से उन्हें सहयोग के लिए कोई मानदेय नहीं मिलता है। ब्रजेश के अनुसार वह इस मंच का इस्तेमाल गरीब लोगों के अधिकारों की लड़ाई में एक माध्यम के तौर पर करते हैं। हालांकि वह ये भी कहते हैं कि वे अपना काम इस मंच के बिना भी करते रहे हैं और कर सकते हैं।

जगदीश यादव, एक एनजीओ पंचशील सेवा संस्थान चलाते हैं और वह सीजी नेटस्वर के स्वयंसेवक भी हैं। उनका संस्थान रीवा में कमजोर व हाशिये के लोगों के अधिकार और विकास के लिए कार्य करता है। वह कहते हैं कि सीजी नेटस्वर का इस्तेमाल वह अपने सामाजिक कार्यों में करते हैं और इस काम के लिए सीजी नेटस्वर से कोई पैसा नहीं लेते। जगदीश की ये शिकायत है कि कई दफा लोग फोन कर अपनी शिकायतें रिकॉर्ड कराते हैं लेकिन सीजी नेटस्वर द्वारा उन्हें प्रसारित नहीं किया जाता। शिवेंद्र सिंह परिहार सीजी नेटस्वर के स्वयंसेवक और पंचशील सेवा संस्थान के सदस्य भी हैं। उनकी प्रतिक्रिया भी कमोबेश जगदीश यादव जैसी ही थी। उन्हें भी सीजी नेटस्वर से सहयोग के लिए कोई मानदेय प्राप्त नहीं होता।

उषा यादव, हाथ से लिखा अखबार ‘बहिनी दरबार’ निकालती हैं जिसमें केवल रीवा जिले की महिलाओं से जुड़ी स्थानीय स्तर की खबरें होती हैं। उषा, सीजी नेटस्वर की स्वयंसेवक भी हैं। उनका कहना है कि सीजी नेटस्वर का इस्तेमाल वह खबरों के लिए जिंदा सुबूत (वाइस प्रूफ) के तौर पर करती हैं। उनका ये भी कहना है कि केवल सीजी नेटस्वर पर शिकायत दर्ज कराने से कुछ नहीं होता। जन्मावती देवी भी बहिनी दरबार के साथ ही काम करती हैं और उनकी प्रतिक्रिया भी उषा यादव जैसी रही।

रीवा जिले के जावा ब्लॉक के उन कुछ गांवों के लोगों से बातचीत भी की गई जहां लोगों ने सीजी नेटस्वर पर कभी अपनी शिकायतें रिकॉर्ड कराई हों। यह रीवा जिले का सर्वाधिक पिछड़ा इलाका हैं जहां की ज्यादातर आबादी अनुसूचित जाति/जनजाति श्रेणी की है। ज्यादातर आर्थिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े व दैनिक मजदूर हैं। गांव में पहुंचने के लिए कोई पक्की सड़क भी नहीं है बल्कि मुख्य सड़क को जोड़ने वाला रास्ता भी 10 किलोमीटर लंबा है। पानी के लिए लोग रोज एक किलोमीटर पैदल चलकर जाते हैं। गांव में अभी बिजली नहीं आई है। बहुत कम लोगों को इंदिरा आवास व शौचालय मिला है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), पेंशन व पट्टा के लिए योग्य लोगों को भी इसका लाभ नहीं मिला हैं। इन गांवों में रह रहे लोग सीजी नेटस्वर के बारे में भी नहीं जानते, हालांकि सीजी नेटस्वर के स्वयंसेवकों का कहना है कि उन्होंने वहां पर प्रचार अभियान चलाया है। गांव के लोग केवल उन स्वयंसेवकों का नाम जानते हैं जो कभी-कभी आकर उनकी शिकायतें फोन पर रिकॉर्ड करते हैं। यहां के ज्यादातर लोग मोबाइल फोन रख पाने में सक्षम नहीं हैं, जिनके पास है वह खुद सीजी नेटस्वर को फोन कर पाने के बारे में जागरूक नहीं है। इन पिछड़े गांवों में सीजी नेटस्वर के जरिये कोई जागरूकता का नामो-निशान नहीं दिखता है।

रीवा जिले के उन कुछ सरकारी अधिकारियों से भी साक्षात्कार किया गया जिन्होंने कभी सीजी नेटस्वर पर आई शिकायतों के समाधान किये हों। जिन अधिकारियों का साक्षात्कार लिया गया उनमें जिला कलक्टर राहुल जैन, ग्रामीण विकास विभाग के प्रोजेक्ट इकोनॉमिस्ट राजेश शुक्ला, जिला आपूर्ति नियंत्रक एमएनएच खान, सामाजिक न्याय विभाग के सहायक निदेशक डी के वर्मा, विद्युत विभाग के सुप्रीटेंडेंट वीके जैन व पीएचई विभाग के कार्यकारी अभियंता पंकज राव शामिल हैं। इन अधिकारियों का कहना था कि वह सीजी नेटस्वर के बारे में नहीं जानते बल्कि उन कुछ स्वयंसेवकों को जानते हैं जो लोगों की समस्याएं लेकर उनके पास आते हैं। उनका कहना था कि लोगों की समस्याओं को जानने के लिए वह सीजी नेटस्वर नहीं सुनते बल्कि उनके पास अन्य स्रोतों से खबरें आती हैं।

स्थानीय लोगों, स्वयंसेवकों व अधिकारियों के साक्षात्कार से इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि रीवा में सीजी नेटस्वर जैसी संचार तकनीक के माध्यम से कोई विकास या बदलाव नहीं हुआ है। सीजी नेटस्वर केवल स्थानीय लोगों या अपने स्वयंसेवकों से प्राप्त रिपोर्ट को प्रसारित करती है, साथ ही उन रिपोर्ट में जिन समस्याओं का जिक्र होता है उसका समाधान कराने के लिए दूसरे अन्य संगठनों के लोग या स्वयंसेवक खुद अधिकारियों या सरकारी दफ्तरों तक जाते हैं। हालांकि इन स्वयंसेवकों या उनके संगठनों द्वारा जिले के अधिकारियों से मिलकर बताई समस्याओं में से भी बहुत कम का ही समाधान हो पाता है। सीजी नेटस्वर अपने ज्यादातर स्वयंसेवकों/कार्यकर्ताओं को उनके सहयोग के बदले किसी भी तरह की सहायता उपलब्ध नहीं कराता। पिछड़े इलाकों में ना तो ग्रामीण सीजी नेटस्वर के बारे में जानते हैं, ना ही जिले के अधिकारी इसके बारे में जानते हैं। स्वयंसेवकों के अनुसार उनके द्वारा रिकॉर्ड कराई गई ढेर सारी शिकायतों में थोड़ी सी शिकायतों को ही प्रसारित किया जाता है। विवाद पैदा करने वाली शिकायतों को आमतौर पर प्रसारित नहीं किया जाता है। ग्रामीण इलाकों में ज्यादातर लोग मोबाइल फोन रखने में सक्षम नहीं है और जिनके पास है भी वह उसका ज्यादा इस्तेमाल करने के बारे में जागरुक नहीं हैं ऐसे में सीजी नेटस्वर के जरिये इस इलाके में कोई विकास या बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती।

मोबाइल वाणी

ग्राम वाणी आईआईटी दिल्ली से चलने वाली सोशल टेक कंपनी है। मोबाइल वाणी, ग्राम वाणी से ही निकला आपसी संवाद आधारित तकनीकी व्यवस्था है। इसमें लोग मिस्ड कॉल करते हैं जिसके बाद उन्हें वापस फोन करके कोई संदेश सुनने या कहने का विकल्प दिया जाता है। मोबाइल फोन आधारित यह व्यवस्था 2012 में बिहार और झारखंड में शुरू की गई और इसका दावा है कि 4 लाख लोगों ने फोन किया है। रोज 5000 फोन मोबाइल वाणी पर आते हैं। इसकी शुरुआत सामुदायिक मीडिया के रूप में हुई थी जहां लोग स्थानीय मुद्दों पर अपने विचार साझा कर सकते हैं या अपनी समस्याएं बता सकते हैं। इसके अलावा यह कंपनियों व गैर मुनाफा कमाने वाले लोगों को विज्ञापन, बाजार सर्वेक्षण व फीडबैक के लिए स्थान भी मुहैया कराती है। सरकारी कामकाज या घोषणाओं, आंकड़ें जुटाने व फीडबैक लेने के लिए भी ये मंच उपलब्ध कराया जाता है। मोबाइल वाणी कई तरह के जागरूकता कार्यक्रमों में शामिल होने का दावा करता है जैसे कि कम उम्र में शादियां, घरेलू हिंसा, मातृत्व स्वास्थ्य, परिवार नियोजन, राज्य स्वास्थ्य सेवाएं, ग्रामीण-शहरी पलायन व मनरेगा आदि। मोबाइल वाणी को कई सारे पुरस्कार मिले हैं जिसमें 2008 में नाइट न्यूज चैलेंज, 2009 में मंथन अवॉर्ड, 2010 में इकोनॉमिक टाइस्म पॉवर ऑफ आइडिया अवॉर्ड, 2012 में द राइजिंग स्टार इन ग्लोबल हेल्थ अवॉर्ड व एमबिलियनथ अवॉर्ड साउथ एशिया शामिल हैं।2

मोबाइल वाणी की ग्रामीण स्तर पर पहुंच का अध्ययन करने के लिए मधुबनी व जमुई जिले को चुना गया। अध्ययन के लिए दोनों जिलों के कुछ स्वयंसेवकों का साक्षात्कार किया गया। सभी का कहना था कि वह केवल इसके लिए समाचार जुटाते हैं या फिर सामाजिक मुद्दों जैसे कि कम उम्र में शादियां, घरेलू हिंसा, मातृत्व स्वास्थ्य, परिवार नियोजन, राज्य स्वास्थ्य सेवाएं, मनरेगा के बारे में जागरूकता का प्रसार करते हैं। स्वयंसेवकों ने मोबाइल वाणी सुनने वाले जिन स्थानीय लोगों से मिलवाया उनमें से ज्यादातर मध्यम आय वर्ग के लोग थे जो अपने मनोरंजन या स्थानीय खबरें जानने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। पिछड़े इलाकों के हाशिये के लोगों द्वारा इसका इस्तेमाल करने के बारे में पूछे जाने पर ऐसे किसी भी व्यक्ति से नहीं मिला सके जिनकी जिंदगी में मोबाइल वाणी के जरिये कोई बदलाव आया हो

इन दोनों जिलों में मुसहर (माझी) जाति की बड़ी आबादी है जिसे बिहार सरकार ने महादलित घोषित किया है। यह जाति सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक रूप से बहुत पिछड़ी हुई है जिसके पास ना तो पर्याप्त खाने को, न ओढ़ने-बिछाने को, ना सुबहित का घर है। ज्यादातर अशिक्षित हैं। उनके पास सरकार की योजनाओं के बारे में या इंसान के तौर पर उनके अधिकारों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। उनके बारे में ये प्रचलित है कि वह खेतों में पाये जाने वाले चूहे खाकर जिंदा रहते थे। मोबाइल वाणी के कार्यकर्ताओं से जब इस जाति के लोगों से मिलवाने के लिए कहा गया तो वह ऐसे एक भी परिवार से नहीं मिलवा पाए जिनकी जिंदगी में कोई बदलाव आया हो या उनकी समस्याओं का समाधान हुआ हो।

जनमीडिया के नवम्बर अंक में प्रकाशित सर्वे

Tag(s) : #पत्रकारिता का भविष्य: पत्रकारिता संस्थानों में एक सर्वेक्षण
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